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उत्तर वैदिक काल (Mahajanapada Period) और नए धार्मिक आंदोलनों का उदय (c. 600 - 325 BCE)
उत्तर वैदिक काल के बाद, भारतीय उपमहाद्वीप में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन हुआ. छोटे-छोटे जनपद बड़े और शक्तिशाली महाजनपदों में विकसित होने लगे. यह वह काल था जब लोहे के व्यापक उपयोग ने कृषि उत्पादन और शहरीकरण को बढ़ावा दि...
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उत्तर वैदिक काल (Mahajanapada Period) और नए धार्मिक आंदोलनों का उदय (c. 600 - 325 BCE)
उत्तर वैदिक काल के बाद, भारतीय उपमहाद्वीप में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन हुआ. छोटे-छोटे जनपद बड़े और शक्तिशाली महाजनपदों में विकसित होने लगे. यह वह काल था जब लोहे के व्यापक उपयोग ने कृषि उत्पादन और शहरीकरण को बढ़ावा दिया. साथ ही, जटिल वर्णों और वर्ण व्यवस्था की कठोरता के कारण समाज में असंतोष बढ़ा, जिससे नए धार्मिक और दार्शनिक विचारों का उदय हुआ.
अ) महाजनपद काल: सोलह महान राज्य
लगभग 600 ईसा पूर्व तक, उत्तरी भारत में 16 बड़े और शक्तिशाली राज्यों का उदय हुआ, जिन्हें महाजनपद कहा जाता था. इनकी जानकारी हमें बौद्ध ग्रंथ अंगुत्तर निकाय और जैन ग्रंथ भगवती सूत्र से मिलती है.
* जनपदों से महाजनपदों का विकास: लोहे के औजारों के व्यापक उपयोग ने कृषि में अधिशेष उत्पन्न हुआ. इस अधिशेष ने जनसंख्या वृद्धि, शहरीकरण और व्यापार को बढ़ावा दिया, जिससे क्षेत्रीय शक्तियाँ मजबूत हुईं और छोटे जनपद बड़े महाजनपदों में परिवर्तित हो गए.
* राज्यतियाँ और शासन प्रणाली: अधिकांश महाजनपदों में राजतंत्र (Monarchy) था, जहाँ राजा वंशानुगत होता था. हालाँकि, कुछ महाजनपद गणतंत्र (Republic) या संघ थे, जैसे वज्जि और मल्ल, जहाँ शासन एक गणसंघ (संघ) के नेताओं द्वारा किया जाता था.
* प्रमुख महाजनपद और उनकी विशेषताएँ:
* काशी (वाराणसी): सबसे शक्तिशाली शुरुआती महाजनपदों में से एक, व्यापार का केंद्र.
* कोसल (श्रावस्ती): मगध का एक प्रमुख प्रतिद्वंद्वी, बाद में मगध में विलय हुआ.
* अंग (चंपा): मगध के मुहाने पर एक महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र, बाद में मगध द्वारा जीता गया.
* मगध (राजगृह/पाटलिपुत्र): सभी महाजनपदों में सबसे शक्तिशाली, जिसने अंततः अन्य सभी को अपने में मिला लिया और एक बड़े साम्राज्य की नींव रखी.
* वज्जि (वैशाली): आठ कुलों का एक संघ (अष्टकुल), एक महत्वपूर्ण गणराज्य.
* मल्ल (कुशीनगर/पावा): एक गणराज्य, जहाँ बुद्ध और महावीर का निधन हुआ था.
* चेदि (शक्तिमती): बुंदेलखंड क्षेत्र में स्थित.
* वत्स (कौशाम्बी): व्यापार पर स्थित महत्वपूर्ण केंद्र.
* कुरु (हस्तिनापुर/इंद्रप्रस्थ): महाभारत से जुड़ा महाजनपद.
* पांचाल (अहिच्छत्र/काम्पिल्य): अपनी शिक्षा और संस्कृति के लिए प्रसिद्ध.
* मत्स्य (विराटनगर): राजस्थान में स्थित.
* शूरसेन (मथुरा): भगवान कृष्ण से संबंधित.
* अस्मक (पोतन/पैठन): दक्षिण भारत में गोदावरी नदी के तट पर स्थित एकमात्र महाजनपद.
* अवंति (उज्जयिनी/महिष्मती): मध्य भारत में शक्तिशाली महाजनपद, लोहे के समृद्ध भंडार के लिए प्रसिद्ध.
* गांधार (तक्षशिला): अपनी शिक्षा और व्यापारिक मार्गों के लिए प्रसिद्ध, पश्चिमी सीमा पर स्थित.
* कंबोज (राजपुर/लाहौर): गांधार के पास, घोड़ों के लिए प्रसिद्ध.
मगध का उत्कर्ष: साम्राज्यवादी शक्ति का उदय
मगध (आधुनिक बिहार) ने अन्य सभी महाजनपदों को पीछे छोड़कर एक विशाल साम्राज्य की नींव रखी. इसके उत्कर्ष के कई कारण थे:
* भौगोलिक स्थिति: राजगृह (गिरिव्रज) पाँच पहाड़ियों से घिरा होने के कारण अभेद्य था. पाटलिपुत्र (आधुनिक पटना) गंगा, सोन और गंडक नदियों के संगम पर स्थित था, जिससे यह जलमार्गों से जुड़ा एक महत्वपूर्ण व्यापारिक और सैन्य केंद्र बन गया.
* आर्थिक समृद्धि: गंगा के मैदानों में उपजाऊ भूमि, जिससे कृषि अधिशेष और राजस्व बढ़ा. लोहे के समृद्ध भंडार (आज के झारखंड में) थे, जिससे बेहतर कृषि उपकरण और हथियार बनाए जा सके. वन क्षेत्र से हाथी उपलब्ध थे, जो सेना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे.
* योग्य शासक: बिंबिसार, अजातशत्रु, महापद्मनंद और चंद्रगुप्त मौर्य जैसे महत्वाकांक्षी और दूरदर्शी शासकों ने मगध के विस्तार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
* राजधानी परिवर्तन: राजगृह से पाटलिपुत्र में राजधानी का स्थानांतरण, जिसने इसे एक रणनीतिक लाभ दिया.
* मगध के राजवंश:
* हर्यंक देव (c. 544-412 BCE):
* बिंबिसार (c. 544-492 BCE): मगध साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक. उसने वैवाहिक संबंधों (कोसल देवी, चेल्लना, क्षेमा से विवाह), विजयों (अंग को जीता) और मैत्रीपूर्ण संबंधों (अवंति के राजा प्रद्योत के साथ) से अपनी स्थिति मजबूत
की. उसने राजगृह को अपनी राजधानी