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1 : भारत का संविधान - परिचय और उसकी आत्मा (प्रस्तावना)
1.1 संविधान क्या है? (मूल अवधारणाएँ)
किसी भी देश को सुचारु रूप से चलाने के लिए कुछ नियमों और कानूनों का सर्वोच्च संहिता की आवश्यकता होती है। यही संविधान है। यह सिर्फ एक किताब नहीं, बल्कि एक जीवित दस्तावेज़ है जो सरकार के विभिन्न ...
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1 : भारत का संविधान - परिचय और उसकी आत्मा (प्रस्तावना)
1.1 संविधान क्या है? (मूल अवधारणाएँ)
किसी भी देश को सुचारु रूप से चलाने के लिए कुछ नियमों और कानूनों का सर्वोच्च संहिता की आवश्यकता होती है। यही संविधान है। यह सिर्फ एक किताब नहीं, बल्कि एक जीवित दस्तावेज़ है जो सरकार के विभिन्न अंगों (विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका) की शक्तियों और सीमाओं को परिभाषित करता है, नागरिकों के अधिकारों और कर्तव्यों को निर्धारित करता है, और समाज के आकांक्षाओं को साकार करने का मार्ग प्रशस्त करता है। यह राष्ट्र को स्थायित्व विधि है, जिससे ऊपर कुछ भी नहीं।
यूपीएससी के लिए मौलिक समझ: संविधान सिर्फ कानून का गढ़ नहीं है, बल्कि यह सामाजिक-राजनीतिक-आर्थिक न्याय प्राप्त करने का एक उपकरण है। यह राष्ट्रीय पहचान का प्रतीक है और देश के मूल प्रणालियों को दर्शाता है।
1.2 संवैधानिक विकास: संक्षिप्त और प्रासंगिक अवलोकन
भारत का संविधान एक दिन में नहीं बना। इसकी जड़ें ब्रिटिश शासन के दौरान पारित विभिन्न अधिनियमों और सुधारों में निहित हैं। इनमें इतिहास में बहुत महत्व रखने वाले कुछ योजनाएं महत्वपूर्ण पड़ावों को समझना होगा जिनसे संवैधानिक विकास की नींव रखी।
* रेगुलेटिंग एक्ट 1773: ब्रिटिश सरकार का भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के कार्यों को नियंत्रित और विनियमित करने का पहला प्रयास। यह एक प्रकार से केंद्रीय प्रशासन की नींव थी।
* पिट्स इंडिया एक्ट 1784: यह एक्ट कंपनी के वाणिज्यिक और राजनीतिक कार्यों को अलग करता है। यहीं से 'द्वैध शासन' की शुरुआत होती है।
* चार्टर एक्सक्ट (1813, 1833, 1853): इन एक्सक्ट ने कंपनी के व्यापारिक एकाधिकार को समाप्त किया, प्रशासन में भारतीयों की भागीदारी के द्वार खोले (सीमित रूप से), और सिविल सेवाओं के लिए खुली प्रतियोगिता की नींव रखी। 1833 का एक्ट भारत के गवर्नर जनरल को विधायी शक्तियां प्रदान करता है, जो केंद्रीयकरण की दिशा में एक बड़ा कदम था।
* भारत सरकार अधिनियम 1858: 1857 के विद्रोह के बाद, यह एक्ट ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन समाप्त करता है और भारत का शासन सीधे ब्रिटिश ताज के अधीन आ जाता है। भारत के राज्य सचिव का पद निर्मित किया गया।
* भारतीय परिषद अधिनियम 1861, 1892, 1909 (मार्ले-मिंटो सुधार): इन अधिनियमों ने प्रतिनिधियों की शुरुआत की। 1909 का अधिनियम, जिसे मार्ले-मिंटो सुधार के रूप में जाना जाता है, ने पृथक निर्वाचन मंडल की शुरुआत की, जिसने बाद में विभाजन की नींव रखी, लेकिन इसमें भारतीयों को विधान परिषद में अधिक प्रतिनिधित्व दिया।
* भारत सरकार अधिनियम 1919 (मोंटेगू-चेम्सफोर्ड सुधार): इसने प्रांतों में द्वैध शासन (Dyarchy) की शुरुआत की और केंद्रीय तथा प्रांतीय विषयों को अलग किया। इसने प्रत्यक्ष चुनाव की भी शुरुआत की।
* भारत सरकार अधिनियम 1935: यह भारतीय संवैधानिक इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण मील का पत्थर था। इसने अखिल भारतीय संघ की परिकल्पना की, प्रांतों में द्वैध शासन समाप्त कर स्वायत्तता प्रदान की, और केंद्र में द्वैध शासन की शुरुआत की। इसने संघीय न्यायालय की स्थापना की और तीन सूचियां (संघ, राज्य, समवर्ती) बनाईं। हमारे वर्तमान संविधान का एक बड़ा हिस्सा इसी अधिनियम से लिया गया है।
* भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947: इसने भारत को स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र घोषित किया, वायसराय का पद समाप्त किया, और भारत के विभाजन का प्रावधान किया।
यूपीएससी के लिए मौलिक समझ: इन एक्सक्ट को सिर्फ तथ्यों के रूप में नहीं, बल्कि भारतीय राष्ट्रवाद के उदय, ब्रिटिश नीतियों में बदलाव और अंततः स्वतंत्रता की प्रगति में क्रमिक विकास के रूप में समझना महत्वपूर्ण है। विशेषकर 1935 के अधिनियम की विशेषताओं पर गहरी पकड़ होनी चाहिए क्योंकि यह हमारे वर्तमान संविधान का ब्लूप्रिंट था।
1.3 संविधान सभा: निर्माण की यात्रा
संविधान सभा वह निकाय था जिसने भारत के संविधान का मसौदा तैयार किया।
* गठन: इसका गठन कैबिनेट मिशन योजना (1946) के तहत किया गया था।
* सदस्य: सदस्य आंशिक रूप से निर्वाचित और आंशिक रूप से मनोनीत थे। प्रांतों के प्रतिनिधि प्रांतीय विधानसभाओं द्वारा चुने गए थे, जबकि रियासतों के प्रतिनिधियों शासकों द्वारा मनोनीत किए गए थे।
* प्रमुख सत्र और कार्य:
* 9 दिसंबर 1946: पहली बैठक, डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा को अस्थायी अध्यक्ष चुना गया।
* 11 दिसंबर 1946: डॉ. राजेंद्र प्रसाद स्थायी अध्यक्ष और एच.सी. मुखर्जी उपाध्यक्ष चुने गए।
* 13 दिसंबर 1946: जवाहरलाल नेहरू ने 'उद्देश्य प्रस्ताव' पेश किया, जो संविधान के मूल दर्शन और संरचना की नींव बना। यह बाद में प्रस्तावना का आधार बना।
* समितियाँ: संविधान सभा ने विभिन्न समितियों के माध्यम से कार्य किया। इनमें सबसे महत्वपूर्ण थी प्रारूप समिति (Drafting Committee), जिसके अध्यक्ष डॉ. बी.आर. अंबेडकर थे। इस समिति ने संविधान का
अंतिम मसौदा तैयार किया।